Who is known as Dada of cricket? |
Sourav Ganguly – वह फील्ड में केवल एक खिलाड़ी बन कर नहीं, भारतीय स्वाभिमान का ध्वज बन कर उतरता था। जी हां दोस्तों हम बात कर रहे हैं महान क्रिकेटर सौरव गांगुली (दादा) की सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) 08 जुलाई, 1972 को हुआ था, उनके पिता का नाम चंडीदास है जो कोलकाता के एक मशहूर businessman थे, दादा भी हर एक कोलकाता वासी की तरह एक बेहतरीन footballer बनना चाहते थे, और शुरुआत में वो इसको काफी Serious भी लेते थे, लेकिन उनके पिता उन्हें फुटबॉलर नहीं बल्कि एक क्रिकेटर बनाना चहते थे।
सौरव गांगुली ने अपने बड़े भाई स्नेहाशीष को देखकर क्रिकेट खेलने की शुरुआत की थी, स्नेहाशीष भी बंगाल cricket team का हिस्सा रहे हैं, क्षेत्रीय क्रिकेट में लगातार शानदार प्रदर्शन के चलते दादा को 1989 में first class cricket में डेब्यू करने का अवसर मिला।
जब दादा ने रच दिया इतिहास
Who is Sourav Ganguly? Why is he so famous? hindi |
बहुत पहले एक इंटरव्यू में वेस्टइंडीज के कथित महान बल्लेबाज Vivian Richards ने कहा था, ‘हम भारत में क्रिकेट खेलने नहीं आते हैं, हम भारत मे इसलिए आते हैं क्योंकि यहाँ की लड़कियाँ खूबसूरत होती हैं” यह भारतीय cricket team का वैश्विक अपमान था. जो किसी जमाने में वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमें हमेशा करती रहती थीं, पाकिस्तानी खिलाड़ियों के द्वारा भारतीय खिलाड़ियों को गाली देने की कथाएँ भी खूब चर्चित रही हैं।
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान steve wa टॉस के समय अंपायर और विपक्षी कप्तान को इंतजार कराने के लिए जाने जाते थे, उस स्टीव वा को 2001 की test series के एक मैच में Toss के लिए दस मिनट इंतजार करा कर जब यह भारतीय कप्तान तिरछी कुटिल मुस्कान छोड़ते हुए बाहर निकला, तो उस दिन फील्ड में बैठे दर्शकों और रेडियो पर कमेंट्री सुन रहे करोड़ों स्रोताओं ने एक स्वर में कहा था, की भारतीय क्रिकेट का युग बदल चुका।
जी हाँ.. उन करोड़ों लोगों में एक हम भी थे, और भारतीय क्रिकेट का युग बदलने वाले उस महान बल्लेबाज का नाम था सौरव गांगुली (दादा)
दादा वो थे जो half critch में आ कर ऑफ साइड के ऊपर छक्का मारते थे, और हम वो थे जिसे यह याद होता था कि.. यह छक्का दादा का 128वाँ छक्का है, दादा वो थे जो मैच फँसने पर pavilion में बैठ कर बार बार अपने गले में लटके ताबीजों को चूम चूम कर मन्नत मांगते थे, और हम वो थे जो मैच शुरू होते ही बरम बाबा से मन्नत मांगते थे कि आज यदि दादा की century लगी तो दस रुपये का लड्डू चढ़ाएंगे।
दादा अपने गगनचुम्बी छक्कों से अधिक अपने आक्रमक स्वभाव के लिए जाने गए, दादा अपने बल्ले से जितनी खूबसूरत cover drive मारते थे, उससे अधिक खूबसूरती से विपक्षी टीम के मनोबल पर ड्राइव मारते थे।
दादा युग के महान खिलाड़ियों में द्रविड़, सचिन, लक्ष्मण आदि अपने शानदार खेल के प्रदर्शन कारण जाने गए, पर दादा अपने खेल से अधिक अपनी लंठई के लिए प्रसिद्ध हुए, लंठई ऐसी कि उन पर कई बार जानबूझ कर सचिन को रन आउट कराने का आरोप लगा, ये आरोप इस कारण सच लगते थे क्योंकि हर बार सचिन के आउट होने पर “दादा” मुँह घुमा कर मुस्कुराते पाए गए, और वही दादा जब ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध संजय बांगर की गलती के कारण 82 रन पर आउट हो गए और भारत हार गया, तो दादा संजय बांगर का कैरियर खा गए।
पुराने दर्शकों को याद होगा कि.. कैसे श्रीलंका के विरुद्ध खेलते समय हर मैच में अनायास ही दो तीन बार दादा के जूते का फीता खुल जाता था, फिर कैसे दादा श्रीलंकन wicket keeper कालूवितरना के पास जा कर उनसे फीता बाँधने का अनुरोध करते, और जब कालूवितरना झुक कर उनके फीते बाँधते तो दादा सर उठा कर खूब मुस्कुराते।
क्रिकेट के खेल में इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, वेस्टइंडीज आदि देश तब अपनी अभद्रता और गालीबाजी के लिए जाने जाते थे, और भारत जाना जाता था.. अपनी सहनशक्ति, अपने गांधीवाद के लिए, वे “दादा” ही थे कि जिन्होंने टीम को सिखाया कि यदि कोई तुम्हारी माँ को गाली दे तो तुम उसकी नानी को गाली दो, यह दादागिरी थी।
2002 के एक मैच में भारत को हराने के बाद इंग्लैंड के एंड्रयू फ्लिंटॉफ ने जब दादा को आँख दिखाया, तो तीन महीने बाद दादा ने NatWest Trophy के फाइनल की जीत के बाद नासिर हुसैन के सामने टीशर्ट लहरा कर जो उत्तर दिया, वह क्रिकेट का ही नहीं पुरे विश्व खेल जगत का इतिहास है। भारत को महेंद्र सिंह धोनी ने दो दो बार world Cup की जीत पर झूमने का अवसर दिया है, पर जिसने 2002 की वह जीत देखी है वह जानता है कि वह अब तक की सबसे शानदार जीत थी।
नेटवेस्ट Trophy की जीत सूखते आसाढ़ की पहली बारिश जैसी थी, जिसमें सब नहा उठे थे, आज भारत की टीम जिस आक्रमक स्वभाव के लिए जानी जाती है, वह दादा की देन है।
मैं धोनी का प्रशंसक इसलिए भी हूँ कि उन्होंने दादा को उनके अंतिम मैच में शानदार विदाई दी थी, तब धोनी ने मैच के अंतिम ओवरों में दादा को सम्मान देते हुए उन्हें कप्तानी सौंप दी थी, दादा भारत के पहले नियमित कप्तान थे जिन्हें फील्ड में पूरे सम्मान के साथ बिदाई दी गयी थी, उस दिन पूरी टीम ने दादा को अपने कंधे पर बैठा कर फील्ड का चक्कर लगाया और राजसी विदाई दी, 10 नवम्बर 2008 का वह दिन, उसके बाद मैंने कभी कोई मैच पूरा नहीं देखा।
दादा का यह बड़ा fan उनके बारे में बस एक बात समझ नहीं पाया, कि आखिर दर्शक दीर्घा में नगमा को देख कर दादा बोल्ड क्यों हो जाते थे।
आज दादा का बड्डे है। बहुत बहुत बधाई उन्हें. हम जैसे करोड़ों लोगों के हीरो सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) को जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार